08 मई 2005

कविता

अवतार

धरा जब डूब जाती है
तब वही शेष बचता है
छेड़ता है राग
सृजन का गीत रचता है
फिर वही संगीत
धरा का ईमान बनता है
अपनी ही माया के हाथों
वही भगवान फिर इंसान बनता है।
***

- नर्मदा प्रसाद मालवीय